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*पूर्व रक्षा मंत्री और गोवा के मुख्यमंत्री रहे मनोहर परिकर जी* कैंसर से जूझते हुए अब हमारे बीच नही रहे। अस्पताल के विस्तर से उनका *यह संदेश बहुत मार्मिक..* "मैंने राजनैतिक क्षेत्र में सफलता के अनेक शिखरों को छुआ ::: दूसरों के नजरिए में मेरा जीवन और यश एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं :::;::; फिर भी मेरे काम के अतिरिक्त अगर किसी आनंद की बात हो तो शायद ही मुझे कभी प्राप्त हुआ ::: आखिर क्यो ? तो जिस political status जिसमें मैं आदतन रम रहा था ::: आदी हो गया था वही मेरे जीवन की हकीकत बन कर रह गई::; इस समय जब मैं बीमारी के कारण बिस्तर पर सिमटा हुआ हूं, मेरा अतीत स्मृतिपटल पर तैर रहा है ::: *जिस ख्याति प्रसिद्धि और धन संपत्ति को मैंने सर्वस्व माना* और उसी के व्यर्थ अहंकार में पलता रहा::: *आज जब खुद को मौत के दरवाजे पर खड़ा देख रहा हूँ तो वो सब धूमिल होता दिखाई दे रहा है साथ ही उसकी निर्थकता बड़ी शिद्दत से महसूस कर रहा हूं::;* आज जब मृत्यु पल पल मेरे निकट आ रही है, मेरे आस पास चारों तरफ हरे प्रकाश से टिमटिमाते जीवन ज्योति बढ़ाने वाले अनेक मेडिकल उपकरण देख रहा हूँ । उन यंत्रों से निकलती ध्वनियां भी सुन रहा हूं : *इसके साथ साथ अपने आगोश में लपेटने के लिए निकट आ रही मृत्यु की पदचाप भी सुनाई दे रही है::::* अब ध्यान में आ रहा है कि *भविष्य के लिए आवश्यक पूंजी जमा होने के पश्चात दौलत संपत्ति से जो अधिक महत्वपूर्ण है वो करना चाहिए। 👉वो शायद रिश्ते नाते संभालना सहेजना या समाजसेवा करना हो सकता है।* निरंतर केवल राजनीति के पीछे भागते रहने से व्यक्ति अंदर से सिर्फ और सिर्फ पिसता हुआ खोखला बनता जाता है ::: बिल्कुल मेरी तरह। *उम्र भर मैंने जो संपत्ति और राजनैतिक मान सम्मान कमाया वो मैं कदापि साथ नहीं ले जा सकूंगा ::;* दुनिया का सबसे महंगा बिछौना कौन सा है, पता है ? ::: "बीमारी का बिछौना" ::: गाड़ी चलाने के लिए ड्राइवर रख सकते हैं :: पैसे कमा कर देने वाले मैनेजर मिनिस्टर रखे जा सकते हैं परंतु :::: *अपनी बीमारी को सहने के लिए हम दूसरे किसी अन्य को कभी नियुक्त नहीं कर सकते हैं:::::* खोई हुई वस्तु मिल सकती है । मगर एक ही चीज ऐसी है जो एक बार हाथ से छूटने के बाद किसी भी उपाय से वापस नहीं मिल सकती है। *वो है :::: अपना "आयुष्य" :: "काल" ::: "समय"* ऑपरेशन टेबल पर लेटे व्यक्ति को एक बात जरूर ध्यान में आती है कि *उससे केवल एक ही पुस्तक पढ़नी शेष रह गई थी और वो पुस्तक है "निरोगी जीवन जीने की पुस्तक" ;::::* फिलहाल आप जीवन की किसी भी स्थिति- उमर के दौर से गुजर रहे हों तो भी *एक न एक दिन काल एक ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देता है कि सामने नाटक का अंतिम भाग स्पष्ट दिखने लगता है :::* स्वयं की उपेक्षा मत कीजिए::: स्वयं ही स्वयं का आदर कीजिए ::::दूसरों के साथ भी प्रेमपूर्ण बर्ताव कीजिए ::: लोग मनुष्यों को इस्तेमाल ( use ) करना सीखते हैं और पैसा संभालना सीखते हैं। *वास्तव में पैसा इस्तेमाल करना सीखना चाहिए व मनुष्यों को संभालना सीखना चाहिए :::* अपने जीवन की शुरुआत हमारे रोने से होती है और जीवन का समापन दूसरो के रोने से होता है:::: इन दोनों के बीच में जीवन का जो भाग है वह भरपूर हंस कर बिताएं और उसके लिए *सदैव आनंदित रहिए व औरों को भी आनंदित रखिए :::"*
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